Thursday 8 November 2012

JAAGO


                                             !!    जागो ओ सीमां के प्रहरी   !!

                  जागो ओ सीमां  के प्रहरी , अब अन्दर  है खतरा ज्यादा ,
                  रो रही भारत माता , टूट रहा संय्यम से नाता ,
                  रोज़ खून के घूँट पीकर अब नहीं चला दफ्तर  जाता,
                   याद सहीदों की आती है, आँखों  में  आंसू   लाती  है,
                  रोज़ लुट रही  भारत माता  को यूं  बेबस अब देखा नहीं जाता,
                  जागो ओ सीमां के प्रहरी , अब अन्दर है खतरा ज्यादा !!

राम राज् था इसी धरती पर कभी,
इस बात का  यकीन नहीं होता,
अंग्रेजों से तो लड़ पाए हम ,
पर इनसे और लड़ा नहीं जाता,
जागो ओ सीमां के प्रहरी , अब अन्दर है खतरा ज्यादा !!

                      ऐसी  कोई गली नहीं,
                      जहां भ्रष्टाचार की ध्वजा नहीं,
                      भ्रष्टाचार ये देशद्रोह है,
                      पर इन भ्रष्टों को कौन सजा है दे पाता ?
                      जागो ओ सीमां के प्रहरी , अब अन्दर है खतरा ज्यादा !!

क़ानून इनकी कठपुतली है,
ब्यवस्था इनकी मुठ्ठी में,
भ्रष्टाचारियों को ताज मिले है,
साधू संत मिले मिटटी में,
बच्चे नंगे भूखे है, चोर कर रहे अय्याशी,
दम घुटता है, लाचारी है,
आम आदमी  है क्या कर पाता ?
जागो ओ सीमां के प्रहरी , अब अन्दर है खतरा ज्यादा !!

                      अब नहीं जागोगे तो, 
                      फिर कभी नहीं  जागोगे तुम, 
                      कोई मार्ग अब शेष नहीं,
                      कोई यत्न अब बचा  नहीं,
                      भारत माँ  की चीख सुनो तुम,
                      गर सच में माँ से है नाता,
                      जागो ओ सीमां के प्रहरी , अब अन्दर है खतरा ज्यादा !! 

!! वन्देमातरम !!

ये सिर्फ मेरी नहीं,
हर उस लाचार माता, पिता, बुजुर्ग और युवा  की दिल की आवाज़ है,
जिसके दिमाक हमेशा ये विचार बार बार आता है,
काश ये गृहस्थी का बोझ न होता, माता पिता की जवाबदारी न होती  तो ,
कम से कम कुछ तो विरोध कर पता इस भ्रष्टाचार का!
यदि एक महीने की अगर तनख्वाह नहीं मिली, तो क्या होगा ?
ये सोचकर आम आदमी खून के घूँट पीकर दफ्तर निकल पड़ता है,  एक दिन कमाता है तो परिवार एक दिन खाता  है, चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पता। सोचता है वोट  दूं, पर किसे? कौन सब से कम चोर है उसे ही वोट दे देता है यदि गनीमत से नाम वोटर लिस्ट में आया हो तो। वैसे देखा जाये तो मेरा नाम 10 साल से वोटर लिस्ट से गायब है, पर इस बार फिर फॉर्म भरा है, देखता हूँ इसबार क्या होता है, वैसे मुझे पूरा भरोसा है नाम फिर गायब रहेगा। जनता अब आन्दोलन करके , भूखी रहके हार गयी है, पत्थर पर सर पटकने से कुछ हासिल नहीं होगा। जैसे लोहा, लोहे को कटता है, ठीक उसी तरह, एक ताकतवर संस्था ही इनसे लड़ पायेगी, सारे आन्दोलनकारी  ठीक कहते हैं, हमें  धोखा सीमा पर कम, अन्दर से ज्यादा है।
आंखिर कौन लड़ पायेगा इन  ताकतवर भ्रताचारियों  से?  दिल और दिमाक  यही एक ही उत्तर देते है।।।।

" जागो ओ सीमां  के प्रहरी, अब अन्दर है खतरा ज्यादा "

एक आम आदमी,
संतोषसिंह ठाकुर